लैंगिक असमानता में भारत पिछले साल से 8 पायदान नीचे गिरा

लैंगिक असमानता में भारत पिछले साल से 8 पायदान नीचे गिरा

नरजिस हुसैन

भारत लैंगिक असमानता इंडेक्स यानी जेंडर इनइक्वैलिटी (जीआईआई) में 155 की फेहरिस्त में 130वें नंबर पर है। एशिया में भारत की स्थिति पाकिस्तान (121) और बांग्लादेश (111) से भी बुरी है। 9 दिसंबर, 2019 में जारी हुई संयुक्त राष्ट्र मानव विकास रिपोर्ट का पैमाना था- प्रजनन स्वास्थ्य, सशक्तिकरण और आर्थिक सक्रियता। बीते साल यानी 2018 में 162 देशों की इस सूची में भारत 122वें नंबर पर था।

2005-2015 के बीच भारत सरकार की अथक कोशिशों के बाद 2 करोड़ 71 लाख लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया गया है लेकिन, बावजूद इसके आज भी भारत दुनिया के 2 प्रतिशत गरीब लोगों का ठिकाना बना हुआ है। अकेले दक्षिण एशिया में भारत ऐसा देश है जहां 41 फीसद लोग गरीब हैं, ये समाज और सरकार के लिए एक बड़ा आंकड़ा है।

हालांकि, 1990-2018 में मानव विकास इंडेक्स (एचडीआई) के आंकड़ों पर अगर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि भारत ने इस दौरान जो बेहतरीन कोशिश की उससे वह खुद को 50 फीसद पिछड़ेपन से उबारने में कामयाब रहा। इससे हुआ ये कि भारत का स्थान मध्यम मानव विकास स्तर वाले देशों की सूची में औसत से ऊपर हुआ और साथ ही साथ दक्षिण एशियाई देशों में भी औसत से ऊपर का स्थान हासिल कर पाया।

इसके मायने ये हुए कि देश में पिछले तीस सालों में जन्म दर 11.6 फीसद, स्कूल जाने की उम्र 3.5 साल और प्रति व्यक्ति आय 250 बार बढ़ी है। जो अपनेआप में अच्छा संकेत है। इसके साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच दूर-दराज के इलाकों तक भी पहुंची है। लेकिन इसके साथ ही रिपोर्ट इस तरफ भी इशारा करती है कि इस विकास के बावजूद भारत जैसे बड़े देश में महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाली असमानता अब भी उसे आगे बढ़ने से रोक रही है। एक तरफ जहां सिंगापुर में शादी में हिसां के कम से कम मामले पेश आते हैं वहीं दूसरी तरफ दक्षिण एशिया में (31 प्रतिशत) पत्नी को मारना-पीटना यहां तक की हत्या कर देने के मामले कुछ नए नहीं हैं।

इसके इतर रिपोर्ट ने यह बात भी साफ की कि असमानता के पुराने तौर तरीकों पर अब कुछ लगाम तो लगी है लेकिन, असमानता ने अब नया रूप ले लिया है। अब यह स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं की पहुंच में कमी से आगे बढ़कर तकनीक, शिक्षा और जलवायु में असमानता पर आ टिकी है। अफसोस की बात यह है कि भारत में आज भी दोनों ही तरह की असमानता मौजूद है और यही वजह है कि भारत लगातार ईमानदार कोशिश करने के बाद भी अब तक इसे पूरी तरह के हासिल नहीं कर पाया है। हालांकि, रिपोर्ट में भारत की कोशिशों की सराहना करते हुए उम्मीद भी जताई गई है कि विकास अगर इसी रफ्तार से जारी रहा तो भारत संवहनीय विकासल्य यानी सस्टेनेबल डेवलेपमेंट गोल का लक्ष्य हासिल कर लेगा।

संयुक्त राष्ट्र का यह मानना है कि असमानता के कारणों की पहचान बहुत जरूरी है उसके बाद का काम राजनीतिक इच्छाशक्ति का है। असमानता कुछ नहीं बल्कि धन और बल का असमान वितरण है। लेकिन, भारत जैसे बड़े और आबादी वाले देश में सिर्फ यही काफी नही यहां कानूनों में सुधार और लिंग आधारित असमानता का सामुदायिक और सरकारी कार्यक्रम चलाकर देश में लिंग आधारित असमानता को एकसमान तरीके से खत्म किया जा सकता है।

 

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